अपराध-भाव एक ऐसा नकारात्मक संवेग है जिसमे व्यक्ति अपने आप को शर्मिंदा महसूस करता है | ऐसे व्यक्ति का किसी भी कार्य में मन नहीं लगता | वह मानसिक रूप से परेशान रहता है |
अपराध – भाव का मुख्य कारण हो सकता है किसी ऐसे कार्य का हो जाना जिसे हम नहीं करना चाहते या फिर कोई ऐसा कार्य कर देना जो समाज की नज़रों में गलत हो | जब हमारे मन में अपराध भाव आता है तो हमारा मन नकारात्मक चीज़ो को सोचने लगता है जिसके कारण हमारा पूरा शरीर उसी तरह प्रक्रिया देने लगता है | व्यक्ति प्रत्येक क्षण उसी के बारे में सोचने लगता है और उसकी कार्यशैली बुरी तरह प्रभावित हो जाती है | हालाँकि अपराध भाव व्यक्ति के लिए अच्छा भी साबित हो सकता है क्योंकि इससे व्यक्ति अपने द्वारा किये गए गलत कार्यो के बारे में सोचता है | फिर भी अपराध - भाव व्यक्ति के मन में हीन भावना पैदा करता है जिससे व्यक्ति अपनी ही नज़रों में गिर जाता है | उसका आत्मसम्मान कम हो जाता है और वह अपना मूल्य कम आंकने लगता है |
अपराध-भाव को यदि व्यक्ति अपने मन में बिठा ले तो वह जीवन में आगे बढ़ने के सारे रास्ते बंद कर लेता है और हीन भावना में जीने लगता है | व्यक्ति को चाहिए की उसके द्वारा जो गलत कार्य हुआ है उसके बारे में मन से पश्चाताप करे और भविष्य में उसे न दोहराने का निर्णय ले | इसके बाद अपने जीवन में एक नए अनुभव के साथ प्रवेश करे | श्री रविशंकर जी कहते हैं कि अपराध-भाव हमारे कपड़ों पर या हमारी त्वचा पर पड़ी धूल जैसा है ; तो जैसे आप उसे थोड़े साबुन और पानी से धो लेते हैं - ज्ञान साबुन है और ध्यान पानी है; तो ध्यान और ज्ञान के साथ आप अपराध-भाव को पार कर सकते हैं |
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